आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया सिर्फ मनोरंजन या कनेक्शन का जरिया नहीं रह गया — अब यह राजनीति, चुनाव और जनमत को प्रभावित करने का सबसे बड़ा हथियार बन चुका है।
Cambridge Analytica और Meta (Facebook) का मामला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसने यह दिखा दिया कि डेटा की ताकत किस तरह लोकतंत्र को हिला सकती है।
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📌 Cambridge Analytica क्या थी?
Cambridge Analytica एक ब्रिटिश डेटा एनालिटिक्स कंपनी थी, जो लोगों की ऑनलाइन गतिविधियों, लाइक-डिसलाइक, और सोशल मीडिया प्रोफाइल का गहराई से विश्लेषण करती थी।
इस डेटा का इस्तेमाल राजनीतिक पार्टियों और नेताओं को यह बताने में किया जाता था कि कौन-से लोग किस बात से प्रभावित होंगे, और उन्हें क्या दिखाना चाहिए ताकि वे वोट बदल सकें।
👉 साल 2018 में यह खुलासा हुआ कि कंपनी ने Facebook के करीब 87 मिलियन यूजर्स का डेटा चोरी से इस्तेमाल किया था।
यह डेटा एक ऐप — “This Is Your Digital Life” — के ज़रिए इकट्ठा किया गया था, जिसने सिर्फ यूजर का नहीं बल्कि उनके दोस्तों का डेटा भी ले लिया।
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💥 Meta (Facebook) की भूमिका
Meta यानी Facebook की पैरेंट कंपनी पर आरोप लगा कि उसने यूजर्स का डेटा सुरक्षित नहीं रखा और Cambridge Analytica को उस डेटा तक पहुँचने दिया।
इसके बाद Meta पर कई देशों में मुकदमे चले।
📅 जुलाई 2025 में वाशिंगटन डी.सी. की अदालत ने Meta के खिलाफ चल रहे केस को जारी रखने की मंजूरी दी।
इस केस में कहा गया है कि फेसबुक ने अपने यूजर्स को यह नहीं बताया कि उनका निजी डेटा राजनीतिक उपयोग के लिए लिया जा रहा है।
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🇮🇳 भारत में Cambridge Analytica की भूमिका
भारत भी इस घोटाले से अछूता नहीं रहा।
Cambridge Analytica के व्हिसलब्लोअर Christopher Wylie ने बताया था कि कंपनी ने भारत के चुनाव अभियानों में भी काम किया था।
उन्होंने दावा किया था कि Cambridge Analytica की भारतीय साझेदार कंपनियों ने कई राज्यों में राजनीतिक डाटा और सोशल मीडिया कैंपेन चलाए थे।
हालांकि, भारतीय पार्टियों ने इससे किसी आधिकारिक संबंध से इंकार किया था।
🔍 रिपोर्ट्स के अनुसार, Cambridge Analytica ने Indian National Congress को एक चुनावी रणनीति का प्रस्ताव दिया था जिसमें फेसबुक और ट्विटर डेटा का उपयोग करके वोटर्स के विचारों को प्रभावित करने की बात कही गई थी।
(हालांकि कांग्रेस ने इस दावे को खारिज किया।)
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🌍 हाल की स्थिति (2024-2025)
Meta ने दिसंबर 2024 में बयान जारी किया कि उसने दुनिया भर में 20 गुप्त प्रभाव (Influence) ऑपरेशन्स को खत्म किया है जो चुनावों और राजनीतिक मतों को प्रभावित कर रहे थे।
इसमें फेक अकाउंट्स, बॉट्स और फर्जी न्यूज़ नेटवर्क शामिल थे।
यूरोप में भी अब डिजिटल हस्तक्षेप (Digital Manipulation) की घटनाएँ तेजी से बढ़ रही हैं — खासकर AI Generated Fake Content और Social Media Bots के ज़रिए।
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⚠️ लोकतंत्र पर असर
Cambridge Analytica केस ने यह साफ कर दिया कि सोशल मीडिया और डेटा-माइनिंग के ज़रिए लोगों के विचारों को बहुत सटीक तरीके से बदला जा सकता है।
इसका मतलब यह है कि अब प्रचार सिर्फ पोस्टर या भाषण तक सीमित नहीं — बल्कि आपके मोबाइल स्क्रीन तक घुस चुका है।
🔹 यह एक तरह का “मनोवैज्ञानिक युद्ध (Psy-Ops)” बन चुका है — जहाँ लोगों के विचारों और भावनाओं से खेला जाता है।
🔹 यह लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है, क्योंकि यह तय करता है कि आप क्या सोचेंगे और किसे वोट देंगे।
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🛡️ आगे का रास्ता
👉 सरकारों और टेक कंपनियों को अब और पारदर्शिता लानी होगी कि
किस तरह यूजर्स का डेटा इस्तेमाल हो रहा है,
कौन-से एल्गोरिद्म तय करते हैं कि हमें कौन-सी खबर दिखेगी,
और कौन-से बॉट्स झूठी खबरें फैला रहे हैं।
👉 भारत जैसे देशों में जहां इंटरनेट और सोशल मीडिया तेजी से बढ़ रहे हैं,
डेटा सुरक्षा कानून और डिजिटल जागरूकता बहुत जरूरी है।
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🔚 निष्कर्ष
Cambridge Analytica घोटाला सिर्फ एक कंपनी की गलती नहीं थी —
यह एक चेतावनी थी कि अगर हम डिजिटल डेटा को सुरक्षित नहीं रखेंगे,
तो कोई और हमारे विचार, भावनाएँ, और लोकतंत्र तक को नियंत्रित कर सकता है।
डेटा ही नया हथियार है, और सोशल मीडिया उसका युद्धक्षेत्र।
